दसवीं मोहर्रम पर विशेष : यौमे आशूरा की अहमियत व फजीलत

यौमे आशूरा के दिन करे अल्लाह की खूब इबादत

रमजान के बाद सबसे अफजल रोजे अल्लाह के महीना मुहर्रम के रोजे

हजरत हुसैन रजी. ने हक की खातिर अपनी जान को अल्लाह की राह में नछावर कर दिया लेकिन बातिल के सामने सर नहीं झुकाया

रियासत अली सिद्दीकी

इस्लामी नुक्ते नजर से यौमे आशूरा की बड़ी फजीलत बयान की गई है। वैसे तो मुहर्रम-उल-हराम का पूरा महीना ही अहमियत का हामिल है। लेकिन खास तौर से यौमे आशूरा की और ज्यादा फजीलत है। यौमे आशूरा मोहर्रम की दसवीं तारीख को कहते हैं। मुहर्रम के महीने की इस्लाम में बड़ी फजीलत बयान की गई है। इसलिए इस महीने के रोजो का बड़ा अज्र बयान किया गया है। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि रमजान के बाद सबसे अफजल रोजे अल्लाह के महीना मुहर्रम के रोज़े हैं। और फर्ज नमाज के बाद सबसे अफजल नमाज रात की नमाज़ यानी तहज्जुद है। इस हदीस से यह बात मालूम हुई कि मोहर्रम के महीने की निस्बत अल्लाह की जानिब की गई है। जिससे इस बात की तरफ इशारा है कि इस महीने में खूब इबादात करके अल्लाह का कूर्ब हासिल किया जाए। मोहर्रम की दसवीं तारीख को तारीखी एतबार से बड़े-बड़े वाकयात पेश आएं हैं। जैसे कि यौमे आशूरा के दिन अल्लाह ताआला ने हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की कौम को फिरौन के जुल्म ओ सितम से नजात अता फरमाई और फिरौन को उसकी फौज के साथ दरिया-ए-नील में गर्क (डुबाया) फरमाया। यही वो दिन है जिसमें हजरत हुसैन रजी अल्लाहु तआला अनहु की शहादत का वाकया भी पेश आया। हजरत हुसैन रजी अल्लाहु तआला अनहु ने हक की खातिर अपनी जान को अल्लाह की राह में नछावर कर दिया लेकिन बातिल के सामने सर नहीं झुकाया। आशूरा के रोजे के बारे में हजरत अबू कतादा रजी अल्लाहु तआला अनहु कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया मैं समझता हूं कि अल्लाह ताआला आशूरा के दिन के रोजे के बदले एक साल के गुनाह माफ फरमा देंगे। हजरत कतादा रजी अल्लाहु तआला अनहु से ही रिवायत है कि आप से आशूरा के रोजे के बारे में पूछा गया। तो आप ने इरसाद फरमाया यह पिछले एक साल के गुनाहों का कफ्फारा है। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजी अल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आशूरा का रोजा रखा और लोगों को भी इसके रखने का हुक्म फरमाया। लोगों ने कहा अल्लाह के रसूल इस दिन तो यहूद व नसारा भी रोजा रखते हैं। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब अगला मोहर्रम आएगा अगर अल्लाह ने चाहा तो हम 9 तारीख को भी रोजा रखेंगे। लेकिन अगला मोहर्रम आने से पहले आप की वफात हो गई। इसलिए 10 मोहर्रम के साथ नौ मुहर्रम का रोज़ा रखना अफजल है। किसी वजह से नौ मुहर्रम का रोजा रखा ना जा सके तो 11 मुहर्रम का रोजा साथ रखना चाहिए। यानि 9-10 या 10-11 मोहर्रम को रोजा रखना चाहिए। इसलिए हमें और आपको गैर कौम की मुशाबहत से भी बचना चाहिए। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रजी अल्लाहु अन्हुमा की रिवायत है। कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने किसी कौम की मुशाबहत की वह उन्हीं में से है। इसलिए किसी भी तरह मुनासिब नहीं कि इस दिन फिजूल काम किए जाएं। हमें और आपको यौमे आशूरा के दिन खूब अल्लाह की इबादत करना चाहिए। और नवाफिल और रोजे के जरिए अल्लाह का कूर्ब हासिल करना चाहिए। इस दिन मुसलमानों को खुराफात और गैरजरूरी मशगूलियात से बचना चाहिए। खुशुसन ताजीयादारी, मेले लगाना, मातम करना, ढोल, ताशे, वगैरह बजाना या ताजिया पर मन्नत मानना मना है। इसका कुरान और हदीस में कहीं कोई जिक्र नहीं है। इसलिए तमाम मुसलमानों को इन गलत कामों से बचना चाहिए।

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