बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा नैतिक मूल्यों के विषय में जानकारी देते थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र

वाराणसी: स्कूल नहीं जाओगे तो पुलिस पकड़कर ले जाएगी, खाना नहीं खाओगे तो पुलिस पकड़ लेगी, होमवर्क नहीं किया तो पुलिस पकड़ लेगी। यही नहीं अगर रात को बच्चा सोता नहीं है तब भी उसे यह कहकर डराया जाता है कि जल्दी सो जाओ नहीं तो पुलिस आ जाएगी। पैरंट्स के मुंह से बार-बार इस तरह की बातें सुनकर बच्चों के दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि पुलिस तो होती ही बुरी है। ऐसे में जब कभी बच्चा किसी तरह के क्राइम का शिकार हो रहा होता है या वह किसी क्राइम होते हुए देखता है तो वह यह सोचकर अपना मुंह खोलने से डरता है कि कहीं पुलिस उलटा उसे ही न पकड़ लें। बच्चों के दिमाग से पुलिस का यह डर निकालने के लिए बनारस के सड़कों पर निकल पड़े हैं कपसेठी के थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र।

दरसल, वाराणसी ग्रामीण कपसेठी के थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र को गरीब बच्चों की पढ़ाई का बहुत फिक्र है। अनिल कुमार मिश्र अपने जीप में किताब-कॉपी, पेंसिल और खाने के लिए बिस्किट लेकर चलते हैं। क्षेत्र में पेट्रोलिंग के दौरान अक्सर उन्हें गांव के पाठशाला के बाहर बच्चों के बीच ये सामग्री बांटते हुए देखा जा सकता है।

थानाध्यक्ष अनिल मिश्र इन बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा नैतिक मूल्यों के विषय में भी बताते हैं और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। दरअसल, इन बच्चों के माता-पिता मजदूरी करते हैं और इन सभी के पास इतना पैसा नहीं कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम कर सकें।

कपसेठी थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र ने बताया कि हमारी आने वाली जेनरेशन को यह बताना जरूरी है कि पुलिस उनकी दुश्मन नहीं, बल्कि दोस्त है। बच्चों को यह भी पता होना चाहिए कि पुलिस उनकी सोसायटी का अहम हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चे मासूम होते है। इसलिए आपराधिक टाइप व्यक्ति आसानी से उन्हें अपना निशाना बना लेते है। 

अनिल मिश्र कहते हैं, बच्चों को गुड टच और बेड टच के बारे में भी बताया जाता है। ताकि ये बच्चे सही-गलत की पहचान करने लायक बन जाएं। बच्चों को यह भी बताया जाता है कि अगर वे अपने आसपास कहीं पर भी क्राइम होता देखें तो वे इसकी जानकारी तुंरत अपने पैरंट्स और टीचर के अलावा पुलिस को दे। 

गौरतलब है कि, बच्चों के पुलिस अंकल अनिल कुमार मिश्र कपसेठी से पहले कोतवाली थाना में तैनाती के दौरान भी शाम में बच्चों के लिए पाठशाला लगाते थे। इस पाठशाला में क्षेत्र के बच्चों को न सिर्फ वह पढ़ाते थे, बल्कि उन्हें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 में देश के आजाद होने तक अंग्रेजों से लोहा लेने वाले अमर शहीद क्रांतिकारियों और महापुरुषों की कहानियां सुनाते थे। इसके साथ ही बच्चों को समझाते थे कि वे अपने आसपास होने वाली गलत गतिविधियों का विरोध कर आपराधिक गतिविधियों पर शिकंजा कसने में पुलिस की मदद करें। पुलिस उनकी मित्र है ।

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