आप सल. की तसरीफ आवरी ने कुफ्र व जलालत के अंधेरे में ऐक नूर की किरण जलाई
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी तमाम इंसानों के लिए नमूना
रियासत अली सिद्दीकी, रामकोट
रामकोट/सीतापुर। जब इंसान कुफ्र जलालत व गुमराही (अल्लाह को भूलकर) में जिंदगी गुजार रहा था और अपने माबूदे हकीकी (अल्लाह) को भूला हुआ था। इंसान इंसानियत का दुश्मन बन चुका था लूटमार, जुआ, चोरी, जिनाकारी, बच्चियों को जिंदा दरगोर (दफन) करना इन बुराइयों को करने पर फक्र गर्व महसूस करना। उनका सेवह (शौक) बन चुका था। ऐसे हालात में अल्लाह ताला ने इंसानो की भलाई के लिए और उन्हें बुराइयों से रोकने और एक माबूदे हकीकी (अल्लाह) की शनाख्त (पहचान) कराने के लिए अल्लाह ताला ने अपने हबीब मोहम्मदे अरबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इस दुनिया में भेजा। आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तसरीफ आवरी (दुनिया में आना) ने कुफ्र व जलालत के अंधेरे में ऐक नूर की किरण जलाई।
आपकी दावत, आपकी मेहनत रंग लाई और वही कौम जो जानवरों से बदतर जिंदगी गुजार रही थी। उन्हें ऐसी हसीन जिंदगी अता फरमाई। कि दुनिया आज भी ऐसी कौम की मिसालें पेश करने से कशिर है। 12 रबी उल अव्वल पीर (सोमवार) के दिन सुबह शादिक आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की विलादत-बासआदत (पैदाइश) हुई। यह तारीख हमे बार-बार आपकी गुलामी की याद दिलाती है। कि तुम ऐसे नबी की उम्मत हो जिसको अल्लाह ताला ने तमाम मखलूकात के लिए रहमत बनाकर भेजा था। आप बेहतरीन अखलाक के हामिल थे। किसी ने हजरते आयशा रजि अल्लाह अनहा से पूछा कि आप सल. के अखलाक कैसे थे हजरते आयशा ने फरमाया क्या तुमने कुरआन नहीं पढा़ जो कुछ कुरआन मे है वह आप सल. के अखलाख थे। गरज आपकी सारी जिंदगी कुरान पाक की अमली तफशीर (कुरान के मुताबिक) थी।

खुद कुरआन ने इसकी शहादत (गवाही) दी और कहा “इन्नका लाला खूलकिनअजीम” यानी बेशक ए मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप हुस्ने अखलाक के बड़े रुतबे पर हैं। आप यतीमो (अनाथ-बेसहारा) से मोहब्बत करते, उनके साथ भलाई की ताकिद (हुकुम) फरमाते। आपने फरमाया मुसलमानों में सबसे अच्छा घर वह है जिसमें किसी यतीम (अनाथ-बेसहारा) बच्चे के साथ भलाई की जा रही हो। और सबसे बुरा घर वह है जिसमें किसी यतीम (अनाथ-बेसहारा) के साथ बुराई की जा रही हो। गरीबों के साथ आपका बर्ताव ऐसा होता था कि उनको अपनी गरीबी महसूस न होती। उनकी मदद फरमाते और उनकी दिलजोई (तसल्ली) करते। अक्सर दुआ मांगते थे कि ऐ अल्लाह मुझे मिस्कीन जिंदा रख, मिस्कीन उठा और मिस्कीनो के साथ ही मेरा हस्र कर। आप मजलूमो (जिसे सताया गया हो) की फरियाद सुनते और इंसाफ के साथ उनका हक दिलाते, कमजोरो पर रहम खाते, बेकसों (मजबूर) का सहारा बनते, मकरूजो (कर्जदारों) का कर्ज अदा करते। आप बीमारो को तसल्ली देते, उनको देखने जाते, दोस्त-दुश्मन और मोमिन व काफिर इसमे कोई कैद (फर्क) नही थी। हमसायो (गरीबों) की खबर गिरी फरमाते, उनके यहां तोहके भेजते, उनका हक पूरा करने की ताकीद (हुकुम) फरमाते रहते। एक दिन सहाबा का मजमा (भीड़) था आपने फरमाया खुदा की कसम वह मोमिन ना होगा-खुदा की कसम वह मोमिन ना होगा सहाबा ने पूछा कौन या रसूल अल्लाह फरमाया वह जिस का पड़ोसी उसकी शरारतो से बचा हुआ ना हो। आपकी यह शाने करीमी और रहीमी सिर्फ इंसानों के लिए मखशूस न थी बल्कि आपकी शान रहमतुल आलमीन कि वुसअत (मेहनत) ने जानवरों के हुकूक के लिए भी जद्दोजहद की। और उनको अपने रहमो करम के साए से हिस्से वाफिर (दया) अता फरमाया। एक बार एक साहब ने एक परिंदे का अन्डा उठा लिया। चिड़िया बेकरार होकर पर मार रही थी। आपने पूछा किसने इसका अंडा लिया है और उसको दुख पहुंचाया है। उन साहब ने कहा या रसूल अल्लाह मैंने यह किया है। आपने फरमाया वही रख दो। उनके बारे में भी एहसान और भलाई का मामला करने का हुक्म फरमाया। जिनका हुस्ने सुलूक (अच्छा बर्ताव) इंसानों के साथ-साथ जानवरों से भी इस कदर था। इसलिए हमें इन बातों को जहन (दिमाग) में रखकर अपनी जिंदगी गुजारनी चाहिए।

रामकोट कस्बा स्थित जामा मस्जिद के पेश इमाम मुफ्ती मोहम्मद उमेर व हाफिज मोहम्मद आकिब ने बताया कि 12 रबी-उल-अव्वल की तारीख हमें इस बात का दर्स (नसीहत) देती है कि तमाम मुसलमानों को अपने नबी मोहम्मदे अरबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जिन्दगी को मसालेराह (आप सल. की तरह) बनाकर जिन्दगी गुजारनी चाहिए। न कि गैर जरूरी मसगूलियात (व्यस्त) मे अपने वक्त को शर्फ (बर्बाद) करना चाहिए। मुसलमानों को अल्लाह ताला ने दो ईदे अता फरमाई एक ईद-उल-फित्र दूसरे ईद-उल-अजहा इसके अलावा तीसरी ईद का कोई तजकिरा कुरान व हदीस में मजकूर (लिखा) नहीं। जिसे हमने ईद मिलादुन्नबी के नाम से मौसूम करके नया रंग दे दिया। शरीयत में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। ना तो किसी सहाबी और ना किसी ताबई ने इस दिन ईद मिलादुन्नबी मनाई है और न इसका हुक्म फरमाया है। इसलिए तमाम मुसलमानों को इन चीजो से बचने की शख्त जरूरत है। “वल्लाहु आलम बिस्वाब”